
1988 में भारतीय एयरलाइंस की फ्लाइट 113 एक दर्दनाक विमान दुर्घटना का कारण बनी, जिसने भारतीय नागरिक उड्डयन इतिहास में एक काले अध्याय की शुरुआत की। यह हादसा 19 अक्टूबर 1988 को अहमदाबाद के पास हुआ, जिसमें 135 यात्रियों और चालक दल के सदस्यों में से 133 की मौत हो गई। केवल दो लोग, अशोक अग्रवाल और विनोद त्रिपाठी, इस दुर्घटना में जीवित बच पाए।

दुर्घटना का विवरण
- उड़ान मार्ग: मुंबई (अब मुंबई) से अहमदाबाद
- विमान प्रकार: Boeing 737-200, रजिस्ट्रेशन VT-EAH
- विमान की उम्र: 17 वर्ष (विमान का निर्माण दिसंबर 1970 में हुआ था)
- विमानन समय: 06:05 IST (मुंबई से प्रस्थान)
- अहमदाबाद में दुर्घटना का समय: 06:53 IST
- दुर्घटना स्थल: कोटरपुर, अहमदाबाद से लगभग 2.5 किमी दूर
विमान ने अहमदाबाद के लिए उड़ान भरी और खराब दृश्यता के बावजूद, पायलटों ने रनवे को देखने की कोशिश की, जिससे वे अपनी ऊंचाई का सही अनुमान नहीं लगा पाए। अंततः, विमान पेड़ों और एक उच्च-तनाव बिजली के खंभे से टकराया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
जांच और कारण
जांच में पाया गया कि पायलटों ने निम्नलिखित मानकों का पालन नहीं किया:
- दृष्टि की कमी: दृष्टि 2000 मीटर से कम थी, लेकिन पायलटों ने बिना रनवे देखे नीचे उतरने का प्रयास किया।
- ऊंचाई की निगरानी में लापरवाही: पायलटों ने ऊंचाई की निगरानी में लापरवाही बरती, जिससे विमान निर्धारित न्यूनतम ऊंचाई से नीचे उतर गया।
- एटीसी से संपर्क की कमी: पायलटों ने लैंडिंग के लिए अनुमति नहीं ली और आवश्यक कॉल-आउट नहीं किए।
- एटीसी की जिम्मेदारी: एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने खराब दृश्यता की जानकारी पायलटों को नहीं दी।
अहमदाबाद हवाई अड्डे के अधिकारियों ने रनवे दृश्यता रेंज (RVR) की माप नहीं की, जो पायलटों के लिए आवश्यक जानकारी होती।
मुआवजा और कानूनी कार्यवाही
भारतीय एयरलाइंस ने शुरू में प्रत्येक मृतक के परिवार को ₹2 लाख का मुआवजा प्रस्तावित किया, जो कि विमानन नियमों के अनुसार अधिकतम था। हालांकि, पीड़ितों के परिवारों ने कानूनी कार्रवाई की, जिसके परिणामस्वरूप अहमदाबाद सिटी सिविल कोर्ट ने ₹6 करोड़ का मुआवजा आदेशित किया, जिसमें 70% भारतीय एयरलाइंस और 30% अहमदाबाद हवाई अड्डे के अधिकारियों को देना था।
निष्कर्ष
भारतीय एयरलाइंस फ्लाइट 113 की दुर्घटना ने विमानन सुरक्षा मानकों की समीक्षा की आवश्यकता को उजागर किया। इसने पायलट प्रशिक्षण, एटीसी प्रक्रियाओं और हवाई अड्डे की जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित किया। यह घटना भारतीय नागरिक उड्डयन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।